21 मई 1991 को, भारत के पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी, तमिलनाडु में जाते हैं, एक रैली अटेंड करने के लिए। लाखों लोगों की भीड़ में, से एक महिला, उनके नजदीक आती है और अचानक एक बम विस्फोट होता है, जिसमें पीएम समेत, लगभग 25 लोग मारे जाते हैं। ये Suicide Terrorism की एक भयानक घटना थी। असल में, वो महिला- लिट्टे संगठन यानी लिबरेशन ऑफ तमिल टाइगर्स ईलम की थी। ये संगठन नाराज था, क्योंकि श्रीलंका में विद्रोहियों को रोकने के लिए, पीएम ने- भारतीय सेना को वहां भेजा था। इसलिए, उन पर ये, आतंकवादी हमला हुआ था। और यही वो दिन था, जिसके बाद से, राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस मनाया जाने लगा। दुर्भाग्य से भारत ने कई आतंकवादी हमले देखे हैं। कुछेक की बात करें, तो 1993 का मुंबई बम विस्फोट, 2001 में संसद पर हमला, 2008 का मुंबई हमला और फरवरी 2019 का पुलवामा अटैक ।
दरअसल- आतंकवाद तबाही के ऐसे निशान छोड़ जाता है, जिसका खामियाजा, न सिर्फ निर्दोष नागरिक, बल्कि सुरक्षाकर्मी और इन्फ्रास्ट्रक्चर को भुगतना पड़ता है। कई आतंकी संगठन, भारत में शांति और सुरक्षा पर खतरा हैं। हालांकि, Terrorist and Disruptive Activities Prevention Act, 1987, यानी टाडा भारत का पहला विशिष्ट कानून था, जिसने आतंकवाद को परिभाषित करने की कोशिश की थी। इसके बाद, Prevention of Terrorism Act, 2002, सहित कई और एक्ट बने और उनमें, समय-समय पर, कई संशोधन भी हुए। सिर्फ भारत ही नहीं, पूरी दुनिया पर, आतंकवाद का खतरा है। आतंकवादी संगठन, अपने निजी स्वार्थ और फाइनांशियल बेनिफिट के लिए काम करते हैं। आतंकवादियों का, न कोई धर्म, समुदाय, और जाति है, और न ही इनमें इनसानियत हैं। लोगों की फाइनांशियल और दूसरी मजबूरियों का फायदा उठाकर, वो युवाओं को आतंकवादी बनाते हैं। इन्हें रोकने के लिए, फाइनेंशियल एक्शन
टास्क फोर्स", रॉ और आईबी जैसी कई intelligence एजेंसियां, military और police अपना काम कर रहे हैं, लेकिन जरूरत है, तो समाज को जागरूक होने की। और सरकार को भी, देश की जनता को, फाइनांशियली स्ट्राँग बनाने की जरूरत है, ताकि लोग, मजबूरी में, गलत रास्तों को न चुनें।